चाँद छुट्टी पर रहा होगा उस रात

chand chhutti par raha hoga us raat

निखिल आनंद गिरि

निखिल आनंद गिरि

चाँद छुट्टी पर रहा होगा उस रात

निखिल आनंद गिरि

और अधिकनिखिल आनंद गिरि

    तितर-बितर तारों के दम पर,

    चमचम करता होगा रात का लश्कर

    चाँद छुट्टी पर रहा होगा उस रात

    एक दो कमरों का घर रहा होगा

    एक दरवाज़ा जिसकी साँकल अटकती होगी

    अधखुले दरवाज़े के बाहर घूमते होंगे पिता

    लंबे-लंबे क़दमों से

    हो सकता है पिता भी हों

    गए हों किसी रोज़मर्रा के काम से

    नौकरी करने

    छोड़ गए हों माँ को किसी की देखरेख में

    दरवाज़ा फिर भी अधखुला ही होगा

    माँ तड़पती होगी बिस्तर पर

    एक बुढ़िया बैठी होगी कलाइयाँ भींचे

    बाहर खड़ा आदमी चौंकता होगा

    माँ की हर चीख़ पर

    यूँ पैदा हुए हम

    जलते गोएठे की गंध में

    यूँ खोली आँखें हमने

    अमावस की गोद में

    नींद में होगी दीदी

    नींद में होगा भईया

    रतजगा कर रही होगी माँ

    मेरे साथ चुपचाप

    चमचम करती होगी रात

    नहीं छपा होगा

    मेरे जन्म का प्रमाण पत्र

    नहीं लिए होंगे नर्स ने सौ-दो सौ

    पिता जब अगली सुबह लौटे होंगे घर

    पसीने से तर-बतर

    मुस्कुराएँ होंगे माँ को देखकर

    मुझे देखा भी होगा कि नहीं

    पंडित के फेर में

    सतइसे के फेर में

    हमारे घर में नहीं है अलबम

    मेरे सतइसे का

    मुँहजुठी का

    या फिर दीदी के साथ पहले रक्षाबंधन का

    फ़ोटो खिंचाने का सुख पता नहीं था माँ-बाप को

    माँ को जन्मतिथि भी नहीं मालूम अपनी

    माँ को नहीं मालूम

    कि अमावस की इस रात में

    मैं चूम रहा हूँ एक माँ जैसी लड़की को

    उसकी हथेली मेरे कंधे पर है

    उसने पहन रखे हैं

    अधखुली बाँह वाले कपड़े

    दिखती है उसकी बाँह

    केहुनी से काँख तक

    एक टैटू भी है

    जो गुदवाया था उसने दिल्ली हाट में

    एक सौ पचास रुपए में

    ठीक उसी जगह

    मेरी बाँह पर भी

    बड़े हो गए हैं जन्म वाले टीके के निशान

    मुझे या माँ को नहीं मालूम

    टीके के दाम।

    स्रोत :
    • रचनाकार : निखिल आनंद गिरि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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