गौरैया का रुदन

gauraiya ka rudan

हरि मृदुल

हरि मृदुल

गौरैया का रुदन

हरि मृदुल

और अधिकहरि मृदुल

    जिस दिन हमने गृहप्रवेश किया था

    लगता है कि उसी दिन गौरैया ने भी

    अपने घोंसले का पहला तिनका रखा होगा

    इस घर में अब तक हमारी एक पीढ़ी जवान हो रही

    परंतु गौरैया की कई-कई पुश्तें पली और उड़ी हैं

    इस तरह इस घर पर जितना हमारा अधिकार

    उससे कम नहीं इस नन्हीं चिड़िया का

    लेकिन कुछ बातें सिर्फ़ बोलने के लिए होती हैं

    और कुछ बातें सिर्फ़ समझने के लिए

    इस घर में रहते हुए कितने ही वर्ष बीत गए

    इसलिए रँगाई-पुताई करनी बहुत ज़रूरी थी

    ऐसे में पुश्तैनी घोंसले को उजड़ना ही था

    तिनकों का बिखरना निश्चित था

    तो इस तरह सरेआम उजाड़ा गया एक आशियाना

    विरोध में कोई आवाज़ क्या उठती

    एक मामूली चिड़िया की चीं चीं चीं की भला किसे परवाह होती?

    हाँ, इस सारे हो-हुल्लड़ के बीच

    गौरैया का रुदन सुना सात साल के सोनू ने

    रुआँसा होकर बताया जिसने कि

    देखो बेघर हुई बेचारी स्पैरो कैसे रो रही

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरि मृदुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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