सारा का सुंदर बदन

sara ka sundar badan

सविता सिंह

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सारा का सुंदर बदन

सविता सिंह

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    सारा पहने हुए थी झीना-सा एक ब्लाउज़

    अंदर था रेशम का एक स्लिप

    होंठ थे सूजे गुलाबी

    आँखों में नींद थी अब भी बाक़ी

    रात को लिए साथ

    मिली थी सारा मुझे पहली बार

    उसने उतार रखे थे अपने गरम कोट दस्ताने गुलूबंद

    जैसे वह बदलना चाहती हो इन सबको

    लेकिन जानती थी सारा

    लादना है इनको निकलते ही

    इस गरम कमरे से बाहर

    जैसे लदी है यह ज़िंदगी उसके सुंदर बदन पर

    मिली जब दोबारा मुझे सारा

    सटकर बैठ गई मेरे पास

    कहने लगी चला गया उसका प्रेम

    किसी दूसरे शहर में

    अब तो फिर से पाना होगा कोई स्पर्श

    ढूँढ़नी होगी कोई और ऊष्मा

    क्या होगा अब इस ख़ाली-सी आत्मा का

    इसे तो भर नहीं सकती पूरे शहर की बर्फ़ भी

    इसे सिर्फ़ प्रेम भर सकता है

    मिलता है जो बमुश्किल और मुश्किलों भरा

    मिली सारा जब मुझे तीसरी बार

    साथ में था नया प्रेम उसका

    उसे चूमता

    और उसका शरीर अपनी सुंदरता पसारे

    खिल रहा था धूप में बर्फ़ पर एक फूल-सा

    मैंने मन ही मन कहा

    ख़ुश रहो सारा लिए अपना यह सुंदर बदन

    आत्मा की चिंता मत करो

    वह तो सदा ख़ाली ही रहती है

    स्रोत :
    • पुस्तक : अपने जैसा जीवन (पृष्ठ 71)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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