हुसैन की निर्वासित देवी के लिए

husain ki nirwasit dewi ke liye

बाबुषा कोहली

बाबुषा कोहली

हुसैन की निर्वासित देवी के लिए

बाबुषा कोहली

और अधिकबाबुषा कोहली

    धरती ने बढ़िया रफ़्तार पकड़ ली अब तो

    मौसम बदल जाते फटाफट

    घड़ी के काँटे से कटता सब पिछला-अगला

    चुटकियों में गिली-गिली छू हो रहे विराट दुःख

    इधर पिछले दिनों परमात्मा साइज़ की मशीनें गई हैं

    मेरी छोड़ो

    समय नाम की टैक्सी की छूटी हुई सवारी हूँ

    छाती पर अटक जाता है उस चंद्रप्रभ दाढ़ी का बाल

    रोक लेती हूँ साँस

    चुटकी भर ज़िंदगी को छटपटा जाती हूँ

    घोड़े जो स्वर्ग से धरती पर उतर आए सरपट

    साबुत हैं अब भी खुर उनके

    घुड़सवार मगर चंद्रमा पर जूते भूल आया

    संसार भर के शब्दकोश पलट दो

    तब भी समझ आएगा नग्नता और नंगई का अंतर

    उँगलियाँ कट गिरें या गले रेत दिए जाएँ

    फिकिर किसे?

    दुनिया के संविधान में संशोधन का कोई प्रावधान नहीं दिखता

    माँ!

    तुमने देखा मुझे जब पहली दफ़ा

    सन् उन्यासी की उस रात दस बज कर पचास मिनट पर

    आँखों में कौतूहल के सिवाय मैंने और क्या पहना था

    याद करो याद करो

    ये ज़रूरी है इसे याद करो

    एक औरत खड़ी है निर्वस्त्र सड़क पार

    सुंदर बहुत है पर बेहया

    वस्त्र पहने होती तो उस दिव्यता के भक्त होते

    माँ!

    एक बात बताओ

    सभ्यता के बुनकरों ने कपड़े-लत्तों के सिवाय और क्या बुना है?

    हाथ ऊँचे कर चंद्रमा निचोड़ने की जुगत में हूँ

    स्वर्ग की सफ़ेद स्याही से एक जोड़ी नंगे पैरों की चुभन लिखना है

    स्रोत :
    • रचनाकार : बाबुषा कोहली
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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