हरा रंग

hara rang

हरि मृदुल

हरि मृदुल

हरा रंग

हरि मृदुल

और अधिकहरि मृदुल

    इंटरव्यू के आख़िर में अभिनेता नसीरुद्दीन शाह से रिपोर्टर ने पूछा—

    ‘आपको कौन सा रंग पसंद है?’

    नसीर को जैसे झटका-सा लगा कि

    इतनी अच्छी बातचीत के बाद यह कैसा बेहूदा सवाल!

    उन्होंने पलटकर अपने ही अंदाज़ में सवाल किया—‘मतलब क्या है मियाँ?’

    ‘मतलब यही कि सफ़ेद, लाल, नीला, पीला, भगवा या हरा...

    कौन-सा रंग पसंद है आपको?’

    ‘हफ़्ते भर पहले ही तो बीती है होली। अब रंग को लेकर यह कैसी रस्साकसी?’

    मन ही मन सोचा हमारे दौर के अज़ीम अभिनेता ने और पूछने वाले की मंशा भाँप ली

    बस इसी समय उन्होंने अपने बेहतरीन एक्टर होने का परिचय दिया

    और अति नाटकीयता के साथ कहा—‘तो सुनो पार्थ, रंगों में मैं हरा रंग हूँ...’

    रिपोर्टर को गहरे अर्थवाली इस नाटकीयता से कोई मतलब नहीं था।

    उसके संपादक ने कहा था कि ‘फाड़ू’ हेडिंग चाहिए, जो उसे मिल चुकी थी शायद

    उसने नसीर को थैंक्स भी नहीं कहा

    और चुपके से खिसक लिया।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरि मृदुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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