ग़ज़ल

kahan to tay tha chiraghan harek ghar ke liye

दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार

ग़ज़ल

दुष्यंत कुमार

और अधिकदुष्यंत कुमार

    कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हरेक घर के लिए,

    कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।

    यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है,

    चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए।

    हो क़मीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे,

    ये लोग कितने मुनासिब हैं, इस सफ़र के लिए।

    ख़ुदा नहीं, सही, आदमी का ख़्वाब सही,

    कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए।

    वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,

    मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए।

    तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शाइर की,

    ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए।

    जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले,

    मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साये में धूप (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : दुष्यंत कुमार
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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