मैथिली लोकगीत : नित प्रति बंसिया बजावे हे रामा
maithili lokgit ha nit prati bansiya bajawe he rama
रोचक तथ्य
संदर्भ—श्रीकृष्ण का वंशीवादन।
नित प्रति बंसिया बजावे हे रामा,
कि मोहन रसिया।।1।।
मधु मधु तान मधुर सुरवा में,
सुनि सुनि जिया तरसावे हे रामा,
कि मोहन रसिया।।2।।
पीताम्बर की कछनी काछे,
गले बैजन्ती सोहावे हे रामा,
कि मोहन रसिया।।3।।
बंसी बजावे गाय चरावे,
गोपियन बन में बोलावे हे रामा,
कि मोहन रसिया।।4।।
एक सखी दूसरी से कहती है—हे सखी! रसिक मोहन (कृष्ण) नित्य प्रति वंशी बजाते हैं।।1।।
उनकी मधुर तान और मधुर स्वर में वंशी हमारे जी को तरसाती है।।2।।
रसिया मोहन कमर में पीताम्बर की कछनी धारण किए हुए हैं और गले में वैजयंती माला सुशोभित है।।3।।
रसिक मोहन वंशी बजाते और गाय चराते हैं। वे गोपिकाओं को वन में
बुलाते हैं (कि वे आकर रास खेलें)।।4।।
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