वक़्त आ गया है
waqt aa gaya hai
अब वक़्त आ गया है
कि आपसी रिश्ते का इक़बाल करें
और विचारों की लड़ाई
मच्छरदानी से बाहर निकलकर लड़ें
और प्रत्येक गिले की शर्म
सामने होकर झेलें
वक़्त आ गया है
कि अब उस लड़की को
जो प्रेमिका बनने से पहले ही
पत्नी बन गई, बहन कह दें
लहू के रिश्ते का व्याकरण बदलें
और मित्रों की नई पहचान करें
अपनी-अपनी रक्त की नदी को तैरकर पार करें
सूर्य को बदनामी से बचाने के लिए
हो सके तो रात-भर
ख़ुद जलें।
- पुस्तक : लहू है कि तब भी गाता है (पृष्ठ 154)
- संपादक : चमनलाल, कात्यायनी
- रचनाकार : पाश
- प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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