उम्मीद रखते हैं...

ummid rakhte hain

पाश

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उम्मीद रखते हैं...

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    मुड़-मुड़ जाती है आलम की स्याह चादर
    जब आँगन में मुर्ग़े की बाँग छनक उठती है
    गीत घोंसलों से निकलकर बाहर आते हैं
    और हवा में उकेर देते हैं
    शहीदों के अमिट चेहरे, मिट्टी का सबसे सुहावना सफ़र

    रोशनी की पहली किरण के साथ
    फैलती हैं इस क़द्र तस्वीरें
    कि देशभक्त यादगार हॉल की मजबूर चारदीवारी पर
    बेपरवाह हँसता है तस्वीरों का आकार

    आप जब भी किसी को नमस्कार करते हैं
    या हाथ मिलाते हैं
    उनके होंठों से तिड़की हुई मुस्कुराहट
    आपकी परिक्रमा करती है
    आप जब किताबें पढ़ते हैं
    तो अक्षरों पर फैल जाते हैं
    उनके अमल और शिक्षाएँ

    जब समाज के रूखे सीने पर
    होता है तलवारों का नृत्य
    जब गर्म लहू बकरे बुलाते हैं

    या जब पेट की गड़गड़ाहट नारा बनती है
    तो कभी रोते, कभी मुस्कुराते हैं—सलीब के गीत
    तुम्हारे पास हल का फाल है या ख़राद की हत्थी
    तुम्हारे पैरों में सुबह है या शाम
    तुम्हारे अंग-संग तुम्हारे शहीद
    आपसे कुछ उम्मीद रखते हैं।

    एक फटी-पुरानी कॉपी से

    स्रोत :
    • पुस्तक : लहू है कि तब भी गाता है (पृष्ठ 32)
    • संपादक : चमनलाल, कात्यायनी
    • रचनाकार : पाश
    • प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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